Thursday, January 05, 2006

कहो भगिनी! विश्लेषण गड़बड़ा गया है.

मुझे याद है!
उसने अपनी बहिन को
सीधी सरल कह दिया था.
आश्चर्य!
उसने बुरा माना था.
मस्तिष्क की मन पर
जीत है यह शायद
सूचनाओं के युग में
स्वाभाविक ही है ऐसा होना.
और कोई भी अपने को अज्ञानी क्यों सिद्ध हो जाने दे?
व्यवहारिकता के मकड़जाल से अनभिज्ञ क्यों सिद्ध हो जाने दे?
कोरा यथार्थवादी जीवन दर्शन.
ठीक है. विश्लेषण ठीक है.
मुझे याद.
एक थे बाबा सेनानी
त्यागी. त्याग दिया सर्वस्व.
त्याग के प्रतिफल से आकांक्षा हीन. बिल्कुल.
दधिची की हड्डी सफलता का सोपान बनी.
कृतज्ञ समाज.
और अस्वीकार कर दिया जाना.
कहा था उन्होने.
त्याग प्रतिफल के लिए नहीं किया था हमने.
बाबा सीधे सरल थे
तल्ख़ होकर कहा था मैंने.
हाँ भगिनी. क्या कहोगी तुम?
सम्पूर्ण मानवीय मनुष्यता के उस अनुपम शौर्य को,
क्या कहोगी तुम?
क्या तुम्हे बुरा नहीं लगेगा?
क्या तुम बुरा नहीं मानोगी?
पता नहीं तुम्हे कैसा लगेगा?
बाबा व्यवहारिकता के मकड़जाल से अनभिज्ञ सिद्ध भी हुए हैं
मुझे मालूम है कि तुम्हे बुरा लगेगा
विश्लेषण गड़बड़ा गया है

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