Saturday, October 27, 2007

खोज

सवाल फिर वही है
खोज का
अपनी अस्मिता का भी

खोज
जैसे पचा ली गयी हो
कस्तूरी की तरह
जो कि मृग-तृष्णा के
जाल बुन रही हो जैसे

और यह विचलन सी तृष्णा
ही संजीवनी हो जैसे

खोज के लिए निरंतर
और
मेरी लिए भी

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