खिड़की खोलो!
खिड़की खोलो
तिमिर भागाओं अज्ञान का
और
प्रकाश को आने दो
एक उद्घोष
विवेकानन्द का
वही प्रारंभ बिन्दु है
जहाँ से मानवीयता
आशा की और प्रस्थान करती है
निरंतर, निवारुद्ध, निर्वासान
और आशा, वह
जो सम्पूर्ण मानवीयता के लिए
गिरिधर की अंगुली है
जो थामती है
गिरते डाँवा डोल गिरि को
बिखरते व्यक्तित्व को
नमन है
विवेकानंद को
प्रदर्शक प्रदाता
ऋषियों को ऋषिपुत्र ऋषि-प्रवर को
जो देते हैं
सन्मार्ग
जो देते हैं
प्रकाश
डांवाँडोल व्यक्तित्व को
और खोल देते हैं
खिड़की
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